अब क्रिस्टीना भी कुछ अपने मुँह में लेना चाहती थी। वह थोड़ी देर बाद वह नीचे खिसक गई और मेरा लण्ड मुंह में लेकर चूसने लगी। फिर कुछ देर बाद मैंने भी पलटी खाते हुए 69 की पोजीशन बनाते हुए, उसकी पेंटी निकाल दी और उसकी रसीली मुलायम झांटदार चूत का रसास्वादन करने लगा। मैं अपनी जबान उसकी नर्म और गर्म चूत मे अंदर बाहर कर, उसे चुदाई का अहसास देने लगा। कुछ देर तक अनवरत जिह्वा-चोदन करने के बाद मुझे अपने मुंह में कुछ गर्म द्रव का अहसास हुआ और फिर क्रिस्टीना कांपती हुई ठंडी पड़ गई। मैं समझ गया कि वह झड़ गई है।
लेकिन मैंने अपने जीभ-चोदन के कार्यक्रम को नहीं रोका, तो नतीजे में कुछ देर में ही वह दुबारा गर्म हो गई। अब मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और मैं उसके ऊपर आ गया। फिर मैंने अपने लण्ड उसकी चूत में प्रवेश करा दिया। उस क्षण को मैं शब्दो में बयान नहीं कर सकता। शायद समय शायद स्वयं भगवान भी मेरे सामने आकर खड़े हो जाते तो, मैं उनसे भी कह देता,"हे भगवान जी, अभी तो मुझे क्षमा करें। कृपया थोड़ी देर के लिये तो आप चले ही जायें। कोई वरदान वगैरह भी देने की इच्छा हो तो, कृपया थोड़ी देर बाद फिर से आ जाना !"
अब मैंने बहुत ही आहिस्ता से अपने लण्ड को उसकी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू किया, तो क्रिस्टीना जोर जोर आवाजें निकालने लगी। वह मेरे कूल्हे पकड़कर ऊपर-नीचे कर मुझे सहयोग करने लग गई। हम दोनों पर नशा चढ़ता ही जा रहा था। कुछ देर की चुदाई के बाद मुझे लगा कि अब कुछ धक्के और मारे तो मेरा लण्ड पानी छोड़ देगा, तो फिर मैंने उसे रुकने का इशारा किया और उसका स्तन-मर्दन करने लगा, ताकि मेरा काम तमाम नहीं हो जाये।
वह समझ गई और मुझसे बोली- पोजीशन बदल लेते हैं।
अब वह पीछे से मेरा लण्ड लेना चाहती थी, वह पलंग पर उल्टी लेट गई। मैंने उसके पेट के नीचे तकिया रख दिया और फिर पीछे से उसकी प्यारी सी मखमली चूत में अपने लण्ड को प्रवेश करा कर थोड़ी देर रुक गया। अब मैं अपनी जबान से उसकी पीठ, गर्दन का पिछला भाग चाटने लगा, वह कामोत्तेजक आवाजें निकालने लगी। कुछ देर बाद मैंने, उसकी चूत में अपने लण्ड को जितना अंदर डाल सकता था, प्रविष्ट करा दिया। वह बिस्तर पर उल्टी लेटी रही पर मैं उसकी गांड पर बैठ गया, जैसे कि मैं किसी घोड़ी की सवारी कर रहा हूँ। थोड़ा सा आगे झुककर, मैं अपने दोनों हाथों के पंजों से उसकी गांड को हौले-हौले से दबाने लगा। जैसे की रोटी बनाते वक्त आटा गुंथते समय पानी मिले आटे को मुक्के से अंदर तक दबाया जाकर, फिर छोड़ दिया जाता है, और फिर अगले ही क्षण दुबारा से हल्के हाथ का प्रेशर बनाकर दबाया जाता है। इसमे क्रिस्टीना को वही अहसास मिला जो, लण्ड को चूत में अंदर बाहर करते हुए मिलता है।
जैसे जैसे मैं उसकी गांड को दबाने लगा, वैसे वैसे वह तड़पने लगी। वह भी मदमस्त होकर अपनी गांड को झटके देने लगी। उसे पूर्ण चुदाई का अहसास मिल रहा था। अंत में वह क्षण आ ही गया कि वह एक बार फिर से झड़ गई। लेकिन मेरा अब भी नहीं हुआ था, क्योंकि इस गांड दबाऊ आसन में मर्द का स्टेमीना बहुत बढ़ जाता है, और वह सामान्य आसनों के मुकाबले में कही ज्यादा देर तक अपनी महिला-साथी को चोद सकता है। वही मेरे साथ भी हुआ, मैं अब भी लण्ड की पिचकारी छोड़ने के लिये भरा पड़ा था।
चुदाई करते वक्त क्रिस्टीना जो आवाजें निकाल रही थीं, उससे यह साबित हो रहा था कि औरत चाहे दुनिया के किसी भी देश की हो, किसी भी रंग की हो, चाहे उसकी मातृ भाषा कुछ भी हो, लेकिन चुदवाते समय वह एक ही भाषा बोलती है, चुदाई की अपनी एक अलग ही भाषा होती है, जो सारी दुनिया में एक जैसे ही बोली जाती है।
अब मैंने क्रिस्टीना को सीधा कमर के बल लेटाया और फिर और उसकी दोनों टांगों को उसकी कमर की ओर मोड़ कर उसकी चूत में अपने लण्ड को आहिस्ता से अंदर डाल दिया। यह आसन सबसे आसान और ज्यादा प्रचलित भी है। अब जब मुझे लगा की मेरा लण्ड उसकी चूत में पूरी तरह से अंदर चला गया है, तो कुछ देर रुककर मैंने अपने शरीर को बिना हिलाये, और लण्ड की नसों को फुलाना शुरु किया, इससे उसकी चूत में झटके लगते और उस पर मस्ती छाने लगी, तो बदले में वह भी अपनी चूत की नसें फ़ुलाकर जवाब देने लगी। यह भी एक अलग प्रकार का आनंद था। हम दोनों रुक रुक कर अपने लण्ड और चूत की नसों को बारी बारी से फुलाते रहे। इस प्रकार लण्ड और चूत के बारी बारी से फड़कने के कारण एक परमानंद का अनुभव होने लगा।
इसके साथ मैं क्रिस्टीना के स्तनों का भी मर्दन कर रहा था। लगभग 10 मिनट तक इस खेल को खेलने के बाद जब मेरा ध्यान घड़ी की और गया तो देखा कि हमें इस कमरे में आये एक घंटा हो चुका था, तो मुझे लगा कि अब डेक पर हमें लौट जाना चाहिये क्योंकि जहाज के केप्टन को तो पता थी कि हम कमरे में हैं। हो सकता है कि वह हमारी कुशल-क्षेम पूछने के लिये नीचे स्वयं आ जाये या अपने किसी सहयोगी को ही भेज दे।
यह सोचकर मैंने अपने लण्ड को अंदर-बाहर करना शुरु कर दिया। जैसे ही मैंने अन्तिम आनन्द लेने का मूड बनाया, तो अगले दो-तीन मिनट में ही मेरे साथ साथ क्रिस्टीना का भी स्खलन हो गया। इस स्खलन का दिमाग से बहुत बड़ा सम्बंध है, यदि आप दिमाग में सोच लेते है कि आप लम्बी चुदाई करेंगे तो वह आपका स्खलन लम्बे समय तक नहीं होगा। लेकिन जैसे ही आपने अपने दिमाग को काम तमाम करने के संकेत दिये तो लण्ड भी पिचकारी छोड़ने में क्षण भर भी देरी नहीं करता है।
अब हम दोनों एक दूसरे की बाहों में निस्तेज होकर दो मिनट तक पड़े रहे। फिर मैं एक अच्छे काम-क्रीड़ा का खिलाड़ी होने का रोल निभाते हुए अगले कुछ मिनट तक उसके शरीर को सामान्य करने के लिये हाथ फेरता रहा। इस दौरान मैं उसके स्तनों को भी आहिस्ता से मसलता रहा। अब धीरे धीरे उसकी उत्तेजना शांत पड़ने लगी। इतने में मेरा लण्ड भी सामान्य अवस्था में आकर उसकी चूत से अपने आप बाहर आ गया।
फिर हम उठे, अपने-अपने कपड़े पहने, और कैप्टन को धन्यवाद देकर कमरे की चाभी लौटाकर डेक पर चल रही पार्टी में शामिल हो गये। डान्सर्स अब भी बेली डांस कर रही थीं। हमारा जहाज अब अपने गंतव्य स्थल की ओर वापिस लौटने लगा था। करीब एक घंटे की चुदाई के बाद हम दोनों को भूख लगने लगी थी, अतः हमने भर पेट खाना खाया। क्रिस्टीना बहुत खुश थी, उसने बताया कि ऐसा अभूतपूर्व आनंद उसने कभी नहीं उठाया था। सुबह हवाई जहाज में जमीन से करीब 35,000 फीट की ऊंचाई पर चुदाई और शाम को पानी के जहाज भी। उसका कहना था, कि यह दिन वह कभी भी नहीं भूल सकती है। खैर मैं भी इस दिन को कैसे भूल पाऊंगा। सच बात तो यह थी कि पार्टनर मंझा हुआ खिलाड़ी हो तो चुदाई के खेल का मजा अलग ही आता है।
रात के साढ़े ग्यारह बजे तक हम अपने होटल के कमरे में लौट आए थें। हम दोनों थक चुके थे, अतः एक दूसरे से चिपक कर सो गये।
फिर अगले दिन सुबह सात बजे नींद खुली, उठ कर तैयार होकर हमने नीचे जाकर होटल के रेस्टोरेंट में जाकर नाश्ता किया, और फिर एक चुदाई का मजेदार राऊंड निपटाया, सामने खिडकी खुली थी, समन्दर की लहरे देखने को मिल रही थी, यहाँ दिल के साथ साथ लण्ड और चूत भी हिलोरें ले रहा थें। जब सवेरे के नाश्ते की चुदाई हो गई तो हम दोनों ने विचार किया कि क्यों ना, नजदीक में ही स्थित विश्वप्रसिद्ध तुर्की सभ्यता की कुछ महान इमारतों के दर्शन कर लिये जायें। क्रिस्टीना ने भी तत्काल हाँ कर दी क्योंकि वह भी मेरी ही तरह इस्तान्बुल पहली ही बार आई थी।
अब हमने होटल के बिल्कुल ही नजदीक में स्थित सोफिया हेगिया, हिप्पोड्रोम, ब्लू मस्जिद, टोपकापी पैलेस, इजिप्शियन बाजार, सुलेमान मस्जिद जैसी विश्व प्रसिद्ध इमारतों को देखा। इनमें सभी एक से एक लाजवाब व पुरानी हैं।
सोफिया हेगिया एक पांचवीं शताब्दी में बना हुआ एक चर्च था, जिसे पन्द्रहवी शताब्दी में आटोमान शासकों ने चर्च के चारों ओर चार मिनारें बनाकर एक मस्जिद में बदल दिया गया था। फिर इसके साथ ही तुर्की में पन्द्रह सौ वर्ष पुराने क्रिश्चियन साम्राज्य का अंत होकर, मुस्लिम राज की शुरुआत हो गई। सबसे प्रसिद्ध आटोमान शासक - सुल्तान मेहमेत उसी वंश का शासक था, जिस वंश का बाबर था, जिसने हिन्दुस्तान में मुगल वंश की नींव डाली थी। प्रथम विश्वयुद्ध के खात्मे के बाद सबसे अच्छी बात यह रही कि तुर्की में राजवंश के खात्मे के बाद पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने इस पन्द्रह सौ वर्ष पुराने सोफिया हेगिया भवन को एक म्यूजियम का रूप देकर एक विवाद को खत्म कर दिया। कारण यह भव्य इमारत बाहर से तो एक मस्जिद दिखती है, लेकिन अंदर से इसमे दीवारों व छत पर बनी बहुत बड़ी बड़ी और भव्य क्रिश्चियन धर्म की मोजेक पेंटींग्स इसके एक चर्च होने की चुगली करती थी। मुस्तफा अतातुर्क का तुर्की में वही सम्मान है जो भारत में महात्मा गांधी का है। भगवान भारत के नेताओं को भी ऐसी ही सदबुद्धि दे।
खैर मैं फिर बहकने लगा। कुल मिलाकर हमारा दिन बढ़ा शानदार गुजरा। अब थोड़ी थकान होने लगी थी, तो शाम होने से पहले ही लौट होटल लौट आये। हालांकि हम दोनों की इस्तान्बुल के प्रसिद्ध सार्वजनिक स्नानागार, जिन्हें "हमाम" कहा जाता है, में नहाने की इच्छा ठंड के कारण अधूरी रह गई और वैसे भी समय की कमी भी थी। सोचा फिर कभी मौका मिला तो देखेंगे।
कमरे में क्रिस्टीना ने दिल्ली से खरीदी कामशास्त्र की किताब के बारे में याद दिलाया। फिर उसमें से पेंटिंग्स को देखकर हमने विभिन्न आसनों को आज़मा कर रात भर चुदाई का मजा लिया। मेरे वह क्रिस्टीना के साथ गुजारे दो दिन, चुटकी बजाते ही हवा में उड़ गये। मुझे आज तक किसी भी महिला ने सेक्स का वह आनंद नहीं दिया जो क्रिस्टीना ने मुझे दिया था। मैं उस समय को कभी भी नहीं भूल सकता हूँ। आज भी मैं उन्हे अपनी जिंदगी के सबसे बेहतरीन पल मानता हूँ। उन दो दिनों में जैसे हमनें पूरी जिंदगी जी ली थी। उसके बाद मुझे साक्षात यमराज भी आकर कहते कि अब तुम्हारा इस धरती पर जीवन समाप्त हो चला है, तो भी मुझे शायद गम नहीं होता, मैं बहुत खुशी से यमराज के साथ मृत्युलोक की ओर चला जाता।
अगले दिन सुबह हम दोनों एयरपोर्ट की ओर फिर मिलने के वादे के साथ चले। सुबह साढ़े दस बजे क्रिस्टीना पेरिस के लिये रवाना हो गई, और उसके मात्र एक घंटे बाद ही मैं भी बर्लिन चला गया। मैं एयरपोर्ट पर क्रिस्टीना के उड़ने से पहले भगवान से यह प्रार्थना करता रहा कि कहीं कुछ हो जाये और उसकी फ्लाईट रद्द हो जाये और हम कुछ समय और साथ रह जायें, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, जैसे ही उसका विमान हवा में उड़ा, उसके बाद मुझे पता नहीं था कि हम दुबारा कब मिलेंगे।
खैर क्रिस्टीना से मेरी दुबारा मुलाकात अगली गर्मियों में पेरिस में ही हुई, जहाँ हमने बहुत मजे लिये। मैंने वहाँ उसके कहने पर उसके दोस्तों के लिये कामशास्त्र की क्लास ली। वह भी एक लम्बा किस्सा है। यदि आप लोगों को मेरी कथा का यह भाग पसंद आया हो तो कृपया मुझे vikky0099@gmail.com पर मेल करें ताकि मैं अपने पेरिस वाली कामशास्त्र की क्लास के किस्से सुनाने की हिम्मत जुटा सकूँ।
यदि आप हमारे साथ हिमालय-दर्शन यात्रा में जाने के इच्छुक हों तो मुझे लिखें, हमारे साथ कोई भी एक युगल जा सकता है।
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