Saturday, April 2, 2011

दोस्ती का उपहार-3

मैं आपको अपनी पिछली कहानी में बता चुका हूँ कि कैसे मैंने अपनी टीम की लड़की को गांव की चौपाल पर चोदा और फिर कैसे चौपाल के पीछे वाले घर में रहने वाली कजरी भाभी ने मुझे छत पर से चुदाई करते देखा और मुझे ब्लैकमेल कर अपनी चूत मरवाई। आज उसी नीतू की बहन गीतू की चुदाई की बारी है।

उस दिन उसकी चूत मारने के बाद मैंने उसे जल्दी घर भेज दिया था क्योंकि उसने पहली बार चूत मरवाई थी और उसकी चूत में काफी दर्द हो रहा था जो धीरे-धीरे बढ़ने वाला था।

उस दिन उसके घर पर कोई नहीं था। वो धीरे-धीरे अपने घर चली तब तक शाम के 5 बज चुके थे। क्योंकि बारिश का मौसम था इसलिये अन्धेरा जल्दी हो गया था। घर में केवल उसकी बहन गीतू थी। उसका नाम गीता था लेकिन सब उसे प्यार से गीतू कहते थे। मुझे नहीं मालूम था कि नीतू गीतू से सारी बातें बताती है। वैसे भी लड़कियाँ अगर हमउम्र हो तो उनके बीच कोई पर्दा नहीं रहता है जबकि लड़कों में ऐसा नहीं होता है।

तो जब वो घर पर पहुँची तो उसे जल्दी घर आया देखकर गीतू उससे बोली- अरे नीतू ! आज तू बहुत जल्दी आ गई? और ये तू लंगड़ाकर क्यो चल रही है?

नीतू झेंपते हुये बोली- कुछ नहीं, बस ऐसी ही पैर मुड़ गया है।

हालांकि वो आपस में काफी खुली हुई थी लेकिन शायद यह बात उसे उस वक्त बताने का सही समय नहीं था। इसलिये उसने उसे वक्त बहाना बनाकर टाल दिया। लेकिन यह बात उससे ज्यादा देर तक छिप नहीं सकी। क्योंकि घर में घुसते ही वो थकान के कारण सो गई लेकिन उसकी चूत से अभी तक खून रिस रहा था और उसकी सलवार पर खून का बड़ा सा थब्बा था जिससे उसकी बहन को शक हो गया था।

उस वक्त तो उसने उससे कुछ नहीं कहा लेकिन रात को दस बजे के करीब उसने उसे प्यार से जगाया और गरम-गरम दूध पिलाया क्योंकि जल्दी सो जाने के कारण उसने खाना भी नहीं खाया था और उसने भी उसे जगाना जरूरी नहीं समझा।

उसने उससे पूछा- नीतू, सच-सच बता क्या हुआ? वरना मैं कल माँ के आने पर सब कुछ बता दूंगी !

हालांकि उसने यह सब केवल उसे डराने के लिये ही कहा था।

उसके बाद नीतू ने उसे सारी बात बता दी कि वो मुझसे चुदवा कर आई है।

लेकिन इतना सुनते ही गीतू आग-बबूला हो गई- दीदी आपने यह क्या कर दिया? सर को तो मैं पसन्द करती हूँ।

और यह सच भी था क्योंकि मैं जब भी उसके घर जाता तो मेरा सारा ध्यान गीतू ही रखती थी लेकिन मैं पागल नीतू के ही चक्कर में लगा रहता था।

तो नीतू ने उससे कहा- अगर तू सर को पसन्द करती है तो मैं उन्हें तेरे लिये जरूर पटाँऊगी।

इसके बाद जब मैंने नीतू से दुबारा चुदवाने के लिये कहा तो वो बहाना बनाकर टाल गई और बोली कि अबकी बार घर पर ही करेंगे क्योंकि अब तक उसकी माँ दुबारा काम करने के लिये वापस आ गई थी और उसका काम करने आना बन्द हो गया।

उसके बाद एक दिन उसकी माँ किसी काम से पास के गांव में गई और बोली- मुझे अगर आते-आते अंधेरा हो गया तो उसी गांव में ही रूक जाऊँगी। तुम लोग चिन्ता मत करना।

इत्तेफाक से मुझे कुछ काम पड़ा तो मैं उनके घर पहुँचा और मैंने आवाज लगाई तो गीतू निकल कर आई और कहने लगी- माँ तो घर पर नहीं है कोई काम हो तो बता दो।

मैंने कहा- कुछ नहीं !

और अपनी मोटरसाईकिल पर बैठकर जाने लगा तो उसने कहा- जब आप घर जाओ तो घर पर होकर जाना नीतू ने कहा है।

मैंने सोचा कि अगर गीतू घर पर है तो क्या काम हो सकता है। उसके सामने चुदवा तो नहीं सकती है।फिर मैंने कुछ सोच कर कह दिया कि मैं अपनी मोटर साईकिल यहीं खड़ी करके जा रहा हूँ वापसी मैं यहीं से होकर जाउँगा।

मैं जब तक लौटा, तब तक रात के आठ बज चुके थे और अन्धेरा हो चुका था।

मैंने घर के दरवाजे पर खड़े होकर कहा- नीतू, मैं मोटर साईकिल लेकर जा रहा हूँ।

तो अचानक नीतू उठकर आई और मुझे अन्दर बुलाने लगी। वैसे तो मैं गांव में इस तरह की हरकत से परहेज करता हूँ इसलिये मैंने दरवाजे पर ही खड़े होकर कहा- क्या बात है? जो भी कहना है, यहीं कह दो। अन्धेरा हो रहा है और अब मेरा रूकना सही नहीं है।

तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- कम से कम एक मिनट के लिए अन्दर तो चलो।

वो मुझे गैलरी से होती हुई अन्दर वाले कमरे में ले गई। वहाँ एक पंलग पर बिस्तर बिछा हुआ था और उस पर मुझे बिठा दिया।

मैंने कहा- क्या बात है, जल्दी कहो मुझे जाना है।

ऐसी बात नहीं है कि मैं उसे चोदना नहीं चाहता था लेकिन क्योंकि गांव का माहौल था और उसके घर में इस तरह मुझे अजीब सा लग रहा था। दोस्तो, हम इन्हीं छोटी-छोटी गलतियों की वजह से ही हमेशा मार खा जाते है और फंस जाते हैं। इसलिये जब भी किसी लड़की को चोदना हो तो उसे अपने ठिकाने पर ही लाकर चोदना चाहिये ना कि उसके घर पर। इसलिये मैं उसके घर पर रूकना नहीं चाह रहा था क्योंकि वहाँ कभी भी कोई भी आ सकता था।

लेकिन वो मेरी किसी बात का जबाब न देकर मुझे वहाँ बिठाकर चली गई- आप बस एक मिनट रूको, मैं अभी आई।

इतना कहकर वो चली गई और थोड़ी देर बाद एक थाली में मेरे लिये खाना लेकर आ गई।

मैंने उठते हुए जाने की कोशिश करने लगा कि मुझे देर हो जायेगी।

मैंने रात का डिनर हमेशा अपने घर पर ही किया था कभी भी बाहर नहीं किया था अगर कभी दोस्त के साथ पार्टी वगैरह में डिनर करता भी था तो घर जाकर कुछ ना कुछ जरूर खाता और कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल जाता। इसलिये मेरे घरवाले मुझे एकदम शरीफ लड़का समझते थे।

जब मैंने खाना खाने से इनकार किया तो वह ये कहने लगी- मैं जानती हूँ सर कि आप हमारे यहाँ का खाना क्यो नहीं खायेंगे क्योंकि मैं छोटी जात की हूँ।

दोस्तो, मैं जात-पात और ऊँच-नीच को बिल्कुल नहीं मानता और उसने मेरे उसूलों पर चोट की थी शायद वो यह बात जानती थी। इसलिये मैं उसका मन रखने के लिये उसके हाथ का बना खाना खाने के लिये तैयार हो गया।

उसने मेरी मनपसन्द आलू की सब्जी और देसी घी के परांठे बनाये थे जो मैंने बडे शौक से खाये। खाना खाते हुये मैंने उसके हाथ की खाने की बहुत तारीफ की। दोस्तो मैं खाने-पीने का बड़ा ही शौकीन हूँ और अपने शरीर और काम(गाव में घूमने) के हिसाब से मुझे भूख भी काफी लगती थी।

तभी उसने बताया- खाना मैंने नहीं, मेरी बहन गीतू ने बनाया है।

और गीतू को बुलाकर कहने लगी- तू अपने सर को अपने सामने बैठकर खाना खिला।

दोस्तो, अगर आपने कभी गाँव में खाना खाया है तो आपको जरूर पता होगा कि गांव के लोग आपको प्यार से एक दो रोटी ज्यादा ही खिलायेगें। यह मेरे साथ भी हुआ उन्होंने मुझे जबरदस्ती करके दो पराठें ज्यादा ही खिला दिये और पता नहीं उन देसी घी के बने पराठों की बात थी या कुछ और मैं जैसे-जैसे परांठे खाता जा रहा था मुझ पर नींद हावी होती जा रही थी। और कुछ ही देर बाद मैं वहीं सो गया।

नींद में मुझे अपने शरीर पर किसी की हरकत महसूस हुई तो मेरी नींद खुली। मैंने चौंक कर देखा तो कोई मेरे सामने खड़ा हुआ है। लेकिन मैं रोशनी कम होने के कारण उसे ठीक से पहचान नहीं सका, बस इतना ही पता कर पाया कि वो कोई लड़की है। क्योंकि उसकी चूचियाँ उसके सूट पर से उठी हुई दिखाई दे रही थी।

तभी मुझे याद आया कि मैंने अपना मोबाईल पास ही स्टूल पर रखा था जो कि अभी भी वहीं था। मैंने फोरन उसमें समय देखा तो 11.00 बज रहे थे। तभी मुझे एहसास हुआ कि यह मेरा घर नहीं है। तभी मेरी आंखें खुली की खुली रह गई कि मेरे शरीर पर कोई कपड़ा नहीं है।

अचानक मुझे सारी बातें याद आती चली गई कि मैं तो नीतू के घर पर खाना खा रहा था और अपने घर तो अभी तक गया ही नहीं। मैंने जैसे ही उठने की कोशिश की तभी अचानक वहाँ गीतू आ गई और बोली- सर, आप नहीं जा सकते। बहुत मन्नतों के बाद तो मुझे यह मौका मिला है, मैं आपको इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकती हूँ।

एक तो मेरे शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था और दूसरी बात कि मैंने कभी गीतू को इस नजर से नहीं देखा था इसलिये इस वक्त मुझे उत्तेजना के स्थान पर गुस्सा आ रहा था। मैंने तुरन्त पास पड़ी चादर उठाकर अपने नंगे शरीर को ढक लिया। मैंने उसे समझाया कि यह सब करना ठीक नहीं है। इस वक्त मुझे नीतू पर भी गुस्सा आ रहा था कि वो इस वक्त कहाँ मर गई। मुझे लगा कि यह सब नीतू ने किया है और शायद गीतू गलती से यहाँ आ गई है।

लेकिन नीतू इस वक्त है कहाँ।

तभी नीतू भी खम्बे के पीछे से निकल कर आ गई और बोली- सर, गीतू आपको मुझसे भी ज्यादा चाहती है और आपसे शादी करना चाहती है। मेरा प्यार तो मौके की नजाकत था लेकिन यह आपको सच्चा प्यार करती है। प्लीज इसकी बात मान लीजिये।

अब मुझे सब कुछ समझ में आ चुका था और मेरा इस बारे में नीतू को पता लगने का डर भी खत्म हो चुका था। क्योंकि नीतू खुद ही ये सब कुछ करवा रही थी।

तभी गीतू मेरे पास आई और कहने लगी- सर, हाँ कह दीजिये ना सर। मैं आपसे फिर कभी कुछ नहीं मांगूगी।आखिर मैं भी एक मर्द हूँ और मेरा दिल भी एकदम कोमल है जो किसी को रोते हुये नहीं देख सकता। इसलिये मैंने हाँ कह दी लेकिन एक शर्त रख दी कि नीतू भी पहले की तरह मुझसे चुदवाती रहेगी। लेकिन नीतू यह कहकर बाहर चली गई कि आज की रात आप गीतू के हैं और दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया।

अब मैं एक दम आजाद था और गीतू मेरे पास मेरे बिस्तर पर आकर लेट गई और मुझे चूमने लगी। इतनी देर में मैं भी गर्म हो चुका था और मैं भी उसके होठों को चूसने लगा। फिर मैंने भी उठकर उसका कमीज़ उतार दिया और फिर सलवार भी उतार दी। वो अभी तक ब्रा नहीं पहनती थी। उसकी चूचियाँ नीम्बू के आकार की एकदम गोल-गोल और सख्त थी जो देखने में बडी ही प्यारी लग रही थी। मैंने उसे नीचे लिटाया और एक हाथ से उसकी एक चूची दबाने लगा और उसकी दूसरी चूची मुँह लगाकर पीने लगा।

वो एकदम गर्म हो गई और उत्तेजना मुझे अपने आपसे से एकदम कस कर चिपका लिया। मैंने उसकी चूत पर हाथ लगाया तो उसकी पेंन्टी एकदम गीली हो चुकी थी। मैंने उसकी पेन्टी उतारी और पूरी तरह तन्नाया हुआ अपना मोटा लण्ड उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मैंने उसकी चूत के छेद पर अपना लण्ड को टिकाया और एक जोर का झटका मारा। लेकिन लण्ड उसकी चूत को फाड़ने की बजाय ऊपर की ओर सरक गया। मैंने अबकी बार दोबारा धीरे-धीरे कोशिश की लेकिन लण्ड उसकी चूत में जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। क्योंकि उसकी चूत बहुत छोटी थी और उसने आज तक उसमें एक अंगुली भी नहीं डाली थी।

उसने मेरी ओर सवालिया नजरों से देखा कि क्या हुआ। तभी मेरी नजर सामने रखी सरसों के तेल की बोतल पर गई। मैं उठा और तेल उठाकर ले आया। मैंने अपने लण्ड पर तेल लगाया, पलंग के पास खड़े होकर उसकी टांगें पकड़ कर उसे किनारे की ओर खींचा और उसकी गांड के नीचे तकिया रखकर उसकी चूत को ऊपर की ओर उठा दिया जिससे उसकी चूत एकदम खुल कर आगे की ओर हो गई। मैंने उसकी दोनों टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रखी और लण्ड को उसकी चूत के छेद पर टिकाया और अपने लण्ड के टोपे को थोड़ा सा उसकी चूत के अन्दर की ओर घुसाया।

जैसे ही थोड़ा सा सुपारा उसकी चूत के अन्दर गया, उसे हल्के से दर्द का अहसास हुआ। लेकिन उस वक्त तो जैसे वह नशे में चूर थी। उसने इसकी कोई परवाह नहीं की।मैंने उसकी कमर को पकड़ कर एक जोर का झटका मारा तो दो इंच के करीब लण्ड उसकी चूत में चला गया। उसने एकदम चीखने की कोशिश की लेकिन उसके गले से कोई आवाज नहीं निकली। एक बार तो मुझे ऐसा जैसे उसकी सांस ही अटक गई हो। मैं कुछ देर के लिये घबरा कर रूक गया और उसका मुँह एक हाथ से हल्के से दबा लिया जिससे अगर उसकी चीख निकले तो मैं उसे रोक सकूँ। मैंने धीरे-धीरे उसकी एक चूची को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। उसे कुछ देर बार राहत मिली तो मैंने उससे पूछा- क्या ज्यादा दर्द हो रहा है?

तो उसने कहा- ऐसा लगा जैसे मेरी टांगें किसी ने चीर दी हों।

मैंने उसे नहीं बताया कि अभी तो केवल एक चौथाई ही लण्ड अन्दर गया है, वरना शायद वो चुदवाने से ही मना करने लगती।

मैंने उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया। जब मैं पूरी तरह निश्चिंत हो गया कि अब मामला ठीक है तो मैंने कस कर एक झटका और मारा। मेरा आधा लण्ड उसकी चूत में समा गया। उसने अपनी कमर को इधर-उधर झटके देने शुरू कर दियें। मैंने देर ना करते हुये दो-तीन जोर के झटके और मारे और पूरा सात इंच का लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया। वो एकदम तड़प कर रह गई और पूरी ताकत से चीखने की कोशिश की लेकिन उसकी चीख उसके मुँह से बाहर नहीं आ सकी। शायद थोड़ी देर के लिय वह बेहोश भी हो गई। क्योंकि 4-5 मिनट तक उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।

मैंने कुछ देर रूककर उसकी चूत में हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिये। कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोली और और मेरी ओर देखने लगी।

मैंने उससे पूछा- अब कैसा लग रहा है? दर्द कुछ कम हुआ या अभी भी उतना ही है?

कम तो नहीं हुआ है, लेकिन कुछ अजीब सी गुदगुदी हो रही है।

मैं समझ गया कि उसे भी मजा आना शुरू हो गया है और मैंने धक्कों की स्पीड और तेज कर दी। करीब 15 मिनट तक उसे चोदने के बाद मैं भी झड़ गया।

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