Saturday, April 2, 2011

जमशेदपुर की गर्मी-2

प्रेमशीर्ष द्वारा लिखित एवम् प्रेम गुरु द्वारा संशोधित और संपादित

बस मैं समझ गया कि मेरी प्रेम तपस्या आज वरदान बन के बरसने वाली है। यह तो हरी झंडी है अपनी प्यास बुझाने की।

कोमल की आँखों में वासना और आमंत्रण दोनों स्पष्ट झलक रहा था।

और मैंने बिना देर किये उसे खींच कर सीने से लगा लिया। उसकी सांसें तेज हो गईं। मेरा भी यही हाल था। मेरे लंड ने खड़े होकर उसकी चूत का अभिवादन किया और उसकी चूत की पंखुड़ियों ने फड़क कर उसे स्वीकार किया।

मैंने उसके होठ अपने मुँह में ले लिए और जोर जोर से चूसने लगा।

वो भी मेरा साथ देने लगी।

क्या नर्म होंठ थे ! गजब का एहसास था !

दोनों पर नशा छाने लगा था !

मेरे हाथ उसके वक्ष पर चले गए। वो कसमसा गई।

कसे हुए 34-35 आकार के स्तन।

मैं उन्हें मसलने लगा तो वो सिसकारियाँ लेने लगी ! वाह.... कितना मजा आ रहा था !

अब मैंने उसकी नाईटी उतार दी और ब्रा के हुक भी खोल दिए। अब उसके दोनों उरोज बन्धन-मुक्त हो चुके थे। उस खूबसूरती पर मैं फ़िदा हो गया और उन्हें देखता रह गया।

वो शरमा गई और अपना सर उसने मेरे कंधे पर रख दिया। मैंने उसे बाँहों में कस कर भर लिया और आई लव यू कह दिया। पहले तो वो मुस्कुराई और फिर से शरमा गई।

फिर वो मेरे जांघ पर बैठ गई और उसने मेरे शर्ट के बटन खोल दिए और मेरे सीने के बालों में अपनी कोमल उंगलियाँ फ़िराने लगी।

मैं भी उसकी चूचियों से खेलने लगा और उन्हें चूसने लगा।

और फिर एक हाथ सरकाते हुए उसकी सलवार के अंदर उसके वस्ति-स्थल तक पहुँचा दिया।

उसके मुँह से आह निकली और उसने फिर मुझे जकड़ लिया।

मैं उसकी बिना बाल के योनि-ओष्ठ सहलाने लगा। उसकी चूत गीली हो चुकी थी।

मैंने उसकी दोनों पंखुड़ियों के बीच से एक उंगली अंदर डालनी चाही पर उंगली गई नहीं।

मैं समझ गया कि कोमल की कोमल चूत अब तक कुंवारी है। मन हर्ष से भर उठा और मैंने देर न करते हुए उसकी सलवार खोल दिया।

उसने शरमा कर अपना चेहरा ढक लिया। वो शर्म से एकदम लाल हो गई थी। उसकी शर्माने की अदा मुझे भा गई।

उसके हाथ मेरे बाल सहलाने लगे और मैं उसकी नाभि की गोलाईयों को अपनी जीभ से नापने लगा। मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो चुका था और निकर में दबे रहने के कारण उसमें दर्द होने लगा था। इसलिए मैंने अपनी निकर उतार दी और चड्डी में आ गया।

मुझे भी शर्म आ रही थी इसलिए मैंने पहले कोमल की पैंटी उतारने का फैसला किया और उसकी पैंटी को धीरे से नीचे सरका दिया।

वाह क्या नजारा था.....

मध्यम सी चांदनी में उसकी चूत की गुलाबी पंखुड़ियाँ गजब की जानलेवा लग रहीं थी। मैं अपने को और नहीं रोक पाया !

मैं उसकी चूत चाटने लगा।

क्या मादक स्वाद था ! क्या नशा था !

उसके चूत के होंठों को मुँह में भर कर मैं जोर जोर से चूसने लगा और वो सिसकारियाँ भरने लगी। उसकी चूत से काम-रस की बूँदें निकल रहीं थी जो मेरी उत्तेजना को और तीव्र कर रही थीं।

मैंने अपनी जीभ उसकी चूत की दरार में डाल दी। सच ! बहुत मजा आ रहा था।

वो भी अपनी कमर को मेरे चेहरे पर दबा कर समर्थन देने लगी।

उससे भी अब नहीं रहा जा रहा था। उसने अपनी शर्म त्याग कर एक झटके में मेरी चड्डी को नीचे कर दिया और मेरे 7" लंबे और बहुत ही मोटे लंड को आज़ाद कर दिया। उसे देख कर वो चकित रह गई। मेरा लंड शायद उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा विकराल था।

वो बोली,"बाप रे ! यह तो बहुत मोटा और बड़ा है शायद मेरी कलाई से भी ज्यादा मोटा है। मेरी चूत जिसमें एक उंगली नहीं जा सकती ये कैसे जायेगा?"

उसकी मासूमियत पर मुझे हंसी आई और बहुत प्यार भी आया, मैंने कहा,"धीरे-धीरे सब सीख जाओगी मेरी जान !"

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